अवि की याद आती है तो मेरे जहन में एक मासूम सा शरारती बच्चा नजर आता है। एक नटखट, चुलबुला, प्यारा सा बच्चा। इंदौर प्रवास के दौरान जब भी उससे मुलाकात होती है वह प्यारी सी मुस्कान के साथ मिलता और चरण स्पर्श करता। मुझे याद है नखराली ढाणी में हम लोग गए थे , वहां उसने खूब मस्ती करी, टेबल टेनिस खेली ,ऊंट की सवारी करी। उसमें मुझे अपने मां-बाप दोनों का अक्स नजर आता था। जब शाम को हम घर लौटने की बात कहते तो जिद पकड़ लेता और कहता फूफा जी चीनू को यहीं रात रहने दो। लंदन जाने के बाद वहां के समाचार मिलते रहते और उसकी बातें होती रहती । जब उसे एक सामान्य सा बुखार हुआ था तब किसी ने भी नहीं सोचा था की एक बड़े संकट की दस्तक है। भारत में बैठे हम सभी लोग लगातार ईश्वर से दुआएं करते रहे और उधर मनीष और अदिति अपने कर्म में लगे रहे । समय गुजर रहा था और बड़े-बड़े संकट से लड़कर अवि हर बार बाहर आ गया। रेयरेस्ट ऑफ रेयर के इस केस में अदिति और गुड्डू ने जिस तरह से धैर्य , संयम औऱ हिम्मत रखी उसके सामने हम सब नतमस्तक हैं। ईश्वर ने उनकी बड़ी कड़ी परीक्षा ली। अवि के चले जाने के बाद अभी और हौसला रखने की जरूरत है। हमें अवि की यादों के सहारे ही जीना सीखना होगा और एक दूसरे का ध्यान रखना होगा। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वे अवि की आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और गुड्डू , अदिति और पूरे परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। 🙏🙏🙏